वृद्धावस्था की समस्या एवं समाधान

वृद्धावस्था भगाने के बेहद सरल उपाय



अस्सी साल की हड्डी में भी          

                     जागा जोश पुराना था।

सब कहते हैं कुंवर सिंह भी

                    बड़ा वीर मर्दाना था ।।


                 वृद्धावस्था और उम्र का कोई सम्बन्ध नहीं होता। उम्र यह दर्शाता है कि हम इस दुनियां को कितने वर्षों से जानते हैं। यदि वृद्धावस्था के कारण इन्द्रियाँ शिथिल एवं दुर्बल होती, तो बाबू कुंवर सिंह अस्सी साल की उम्र में युद्ध कैसे करते ? जीवन में वृद्धावस्था का आगमन उम्र से नहीं बल्कि हमारी सोच और जीवन जीने के तरीके से आता है। यदि पच्चीस वर्ष का व्यक्ति अपने को हारा और थका हुआ मान लेगा तो वह वृद्ध की श्रेणी में आएगा परंतु यदि 70 और 80 के उम्र में भी कोई व्यक्ति बिना किसी पर बोझ बने दूसरों की सहायता करता है तो वही सच्चा युवा है।





                   आज का युवा दुर्गुणों एवं दुर्व्यसनों में फंसकर युवावस्था में ही वृद्धावस्था को प्राप्त कर ले रहा है। इसलिए जरूरी है कि खुद को इन बुरी आदतों एवं कर्मो से दूर रखें। जीवन को चार आश्रमों में बांटा गया है। ब्रह्मचर्य आश्रम, गृहस्थ आश्रम, वानप्रस्थ आश्रम एवं सन्यास आश्रम। यहाँ हम अंतिम दोनों अवस्थाओं की चर्चा करेंगे, जो इक्कावन से सौ वर्ष के बीच की होती है।

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                  इस अवस्था में पहुंचने तक हमारा पुत्र गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर जाता है। इसके बावजूद हम उसे अपने अनुभवों की शिक्षा देते रहते हैं। वानप्रस्थ आश्रम की सबसे बड़ी समस्या यही है। बच्चे हमारी राय लेना नहीं चाहते और हम अपनी राय उनपर थोपना चाहते हैं। नतीजा आपसी मनमुटाव एवं मानसिक तनाव का जन्म होता है। मानसिक तनाव के कारण हीं हम उच्च रक्तचाप, मधुमेह, हृदयघात आदि रोगों के शिकार हो जाते हैं। तो फिर इस समस्या का समाधान क्या है ? चलिए आज हम इस समस्या का समाधान खोजते हैं।






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              हमें समझना चाहिए कि गृहस्थ आश्रम मे शिक्षा ग्रहण की उम्र समाप्त हो जाती है, अतः बिना मांगे पुत्र को अपनी राय ना दें। अपनी गृहस्थी से जुड़ी जिम्मेवारियों को पुत्र को अवश्य सौंप दें लेकिन अपने आप को नहीं। अपनी जिम्मेवारी खुद उठाये। यदि पुत्र आपकी मदद करता है तो उसे शाबासी दें। पुत्र से अपने किये का बदला ना मांगे। यदि आप पुत्र को पालें हैं तो पुत्र भी आपको पाले ऐसा कतई ना सोचें। मानसिक एवं शारीरिक समस्या को दूर करने के लिए  खुद को व्यस्त रखें। भ्रमण एवं योग- व्यायाम करें। सत् साहित्य पढ़ें। वैसे हमउम्र लोगों से मिले जो प्रसन्न एवं आनंदित रहते हो, ताकि आप भी साथ में खुश रह सकें। 


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            अपने सक्रिय जीवन के बाद साठ-सत्तर की उम्र में अपनी दिनचर्या में परिवर्तन लाना चाहिए। भोजन में जिह्वा और मन का संयम आवश्यक है। 3 चम्मच  आंवलों के रस में 3 चम्मच शहद मिलाकर प्रातः व्यायाम के बाद पी लें। यह रामवाण नुस्खा है। इसका सेवन वृद्धावस्था के कारण होने वाली परेशानियों को दूर कर नवजीवन प्रदान करता है। अपनी प्रतिष्ठा बनाये रखें। काम चाहे धीरे हो लेकिन नियोजित रूप से हो। आलस्य से बचें। नित्य भ्रमण, व्यायाम एवं आसान करें। अपनी बीमारी को बताकर दूसरों से सहानुभूति पाना गलत है। जिंदगी जिंदादिली का नाम है। अतः अपने उत्साह एवं उमंग को कभी ठंढा नहीं पड़ने दें।





                उम्र से कोई बूढ़ा नहीं होता। जब तक इंसान खुद को युवा मानता रहेगा वह युवा हीं रहेगा। अस्सी साल का युवा। बस आप मानकर तो देखें। कुछ लोग कहते हैं ये सब बातें केवल लिखने-पढ़ने में अच्छी लगती है, पालन करने में नहीं। अरे भाई, पहले अमल तो कीजिए। मैं शर्तिया कहती हूँ कि अमल करने पर पढ़ने-लिखने से ज्यादा आनंद की अनुभूति होती है। इस तरह ना वृद्धावस्था आएगी और ना हीं उसकी परेशानी।



वृद्धावस्था की समस्या एवं समाधान वृद्धावस्था की समस्या एवं समाधान Reviewed by Ragini Rani on February 26, 2019 Rating: 5

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