Bitter gourd / करेला का औषधीय गुण एवं उपयोग
करेला का गुण एवं विभिन्न बीमारियों में उपयोग
करेला औषधीय गुणों से सम्पन्न सब्जी है। इसे पूरे भारतवर्ष में सब्जी के रूप में बोया जाता है परंतु आयुर्वेद में इसे औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है। यह स्वाद में कड़वा होता है लेकिन स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त लाभप्रद है। इसके गुणों के कारण ही कड़वा होने के बावजूद इसे विभिन्न प्रकार से प्रयोग में लाया जाता है।
(पढ़ें -- मधुमेह /Diabeties के घरेलू उपचार)
प्राचीन काल से ही करेले को मधुमेह की औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है। प्रत्येक सुबह खाली पेट चार-पांच करेले का रस लेना मधुमेह के रोगी के लिए लाभप्रद होता है। इस रस का सेवन गुर्दे की पथरी में भी लाभ पहुँचता है। नियमित सेवन करने से पथरी पेशाब के साथ घुलकर निकल जाती है। करेले के पत्तों को पीसकर फोड़ा-फुंसी, बवासीर, दाद, छाले एवं त्वचा रोग में लगाने से लाभ होता है। कुष्ठ रोग से प्रभावित स्थान पर नियमित उपयोग करने पर यह निरोधक दवा के रूप में कार्य करता है।
(पढ़ें--- दमा या अस्थमा का घरेलू उपचार)
श्वसन संबंधी बीमारियों में करेले की जड़ का प्राचीन काल से औषधि के रूप में प्रयोग होता आया है। एक चम्मच करेले की जड़ के पेस्ट को एक चम्मच शहद अथवा तुलसी पत्ता के रस में मिलाकर लेने चाहिए। एक महीने तक लगातार रात में इस घरेलू औषधि का सेवन करने से दमा, सर्दी एवं श्वसन संबंधी व्याधियों में लाभ होता है।
बच्चों के पेट में कीड़ा होने पर करेले का फल या ताजा पत्तों के रस में शहद मिलाकर देने से कीड़े नष्ट हो जाते हैं। इसके रस में शक्कर मिलाकर सेवन करने से खूनी बवासीर एवं छाछ के साथ सेवन करने से बादी बवासीर में लाभ होता है। करेले के पत्तों का आधा कप रस में थोड़ी सी हींग मिलाकर सेवन करने से मूत्रावरोध (पिशाब का रुक-रुककर आना) रोग में लाभ होता है।
(पढ़ें--- मूत्र विकार के कारण एवं घरेलू इलाज)
करेला एक कड़वा परंतु अमृततुल्य सब्जी है। अतः अनेक व्याधियों से बचाव के लिए भोजन में इसका अधिक से अधिक सेवन करना चाहिए।
Bitter gourd / करेला का औषधीय गुण एवं उपयोग
Reviewed by Ragini Rani
on
February 16, 2019
Rating:
No comments:
Thanks for comments