Breast feeding tips for new mother/ स्तनपान कराने का सही तरीका
शिशु के लिए अमृत तुल्य है मां का दूध
स्तनपान कराना प्रत्येक माँ का फर्ज है एवं स्तनपान करना प्रत्येक शिशु का अधिकार होता है। स्तनपान माँ एवं शिशु दोनों के लिए प्रकृति का दिया सर्वोत्तम उपहार है। माँ का दूध बच्चे के लिए सर्वोत्तम आहार होता है। माँ के दूध की तुलना किसी भी दूसरे आहार से नही की जा सकती है। प्रसव के बाद माँ अपने स्तनों को साफ करके प्रथम आहार के रूप में शिशु को अपना दूध पिलाये। यदि प्रसव ऑपरेशन से हुआ हो तो गुनगुने पानी में शहद अथवा शक्कर मिलाकर शिशु को पिलाया जा सकता है। डब्बा का दूध अथवा गाय का दूध भी दिया जा सकता है। गाय के दूध में पानी मिलाकर गर्म करें। गर्म दूध को गुनगुना करके शिशु को पिलायें। इन सबके बावजूद ध्यान रहे कि यदि संभव हो तो शिशु को प्रथम आहार के रूप में मां का ही दूध दें।
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कुछ माताएं प्रसव के बाद पहला दूध को निचोड़कर फेंक देती हैं। ऐसा कतई नहीं करना चाहिए। माँ के स्तनों में आने वाले प्रथम दूध को कोलोस्ट्रम (colostrum) कहते हैं। यह दूध रोग प्रतिरोधक शक्ति से भरपूर होता है। इसके सेवन से शिशु को एक साल तक बीमार होने की आशंका कम हो जाती है। यह शिशु को कई रोगों से लड़ने की शक्ति देता है। मां का दूध शिशु के लिए अमृत के समान होता है। अतः सभी प्रसूता स्त्री को चाहिए कि प्रथम दूध अपने शिशु को अवश्य पिलाये। सूर्योदय समय का धूप भी शिशु के लिए बहुत लाभप्रद होता है। आधे से एक घंटा तक धूप स्नान करने से शिशु का पीलिया एवम् अन्य रोगों से बचाव होता है।
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स्तनपान के समय शिशु को गोद में लेकर स्तनपान कराना चाहिए। कभी भी लेटकर स्तनपान नहीं कराना चाहिए। लेटकर स्तनपान कराने से शिशु को कान से संबंधित रोग होने की आशंका रहती है। स्तनपान कराते समय एक हाथ को बच्चे के सिर के नीचे एवं दूसरे हाथ से स्तन को सहारा देते हुए पिलायें। एक स्तन पिलाने के बाद बच्चे को कंधे पर लिटाकर पीठ थपका दें। उसके बाद दूसरे स्तन को पिलाकर फिर से थपथपा दें। ऐसा करने से बच्चा डकार ले लेता है एवं उल्टी नहीं करता है।
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स्तनपान के समय बच्चे का सिर हल्का ऊपर की ओर रखें। ऐसा करने से दूध का साँस नली में जाने का डर नहीं रहता है। कभी भी चिन्ता, शोक, क्रोध एवं मानसिक तनाव की स्थिति में स्तनपान नहीं कराना चाहिए। स्तनपान हमेशा खुशी-खुशी एवं शिशु को प्यार करते हुए करवाना चाहिए। स्तनपान के समय बच्चे का सिर सहलाने से शिशु का उचित मानसिक विकास होता है। स्तनपान के समय माँ की जैसी मनः स्थिति होती है शिशु पर भी वैसा ही असर होता है।
छोटे बच्चे का पेट छोटा होता है इसलिए जल्दी भर जाता है एवं पच भी जल्दी जाता है। इसलिए शुरू के एक महीने तक प्रत्येक एक घंटे पर स्तनपान कराना चाहिए। धीरे धीरे अंतराल बढ़ाना चाहिए। छः महीने तक शिशु को केवल मां के दूध पर रखा जा सकता है। गर्मी के मौसम में आवश्यकता हो तो पानी में शहद मिलाकर दे सकती हैं। छः महीने बाद खिचड़ी या दलिया जैसा पदार्थ देना चाहिए। बच्चे को कम से कम एक साल तक स्तनपान अवश्य कराना चाहिए। स्तनपान करने वाले बच्चे को दांत निकलने में ज्यादा परेशानी नहीं होती है।
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Breast feeding tips for new mother/ स्तनपान कराने का सही तरीका
Reviewed by Ragini Rani
on
April 09, 2019
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