पुत्र अथवा पुत्री प्राप्ति के पुरातन उपाय
जानें, कैसे प्राप्त करें मनचाहा संतान
एक समय था जब संतान के रूप में पुत्र को अधिक महत्व दिया जाता था। परन्तु आज के समय में पुत्र एवं पुत्री दोनों को समान माना जाता है। कानून एवं समाज दोनों की नजर में पुत्री को भी पुत्र के समान माना जाता है। आज के समाज में दंपत्ति पुत्र एवं पुत्री दोनों की चाहत रखते हैं। फिर भी हमारे समाज में आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो पुत्र की चाहत में कन्या भ्रूण हत्या जैसा पाप करने से पीछे नहीं हटते।
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गर्भ में पल रहा शिशु पुत्र हो अथवा पुत्री दोनों ही हमारा अंश होता है। इसे स्वस्थ और सुरक्षित जन्म देना हर माता -पिता की नैतिक जिम्मेवार होती है। गर्भ में पल रहे शिशु की भ्रूण जांच करवाकर हत्या करवाना एक जघन्य अपराध है। ऐसा करना इंसान की मानसिक विकृति को दर्शाता है। अतः कभी भी भ्रूण हत्या जैसा पाप नहीं करना चाहिए। यदि हम मनचाहा संतान प्राप्त करना चाहते हैं तो अपने पूर्वजों के बताए नियम से गर्भ धारण करें एवं जो भी संतान हमें प्राप्त हो उसे ईश्वर का आशीर्वाद मानकर सहर्ष स्वीकार करें।
ऐसा माना जाता है कि स्त्री के शरीर पर चंद्रमा का अत्यंत प्रभाव पड़ता है। इसलिए पुरातन मान्यताओं के अनुसार शुक्ल पक्ष में धारण किए गए गर्भ का शिशु भी चंद्रमा की ही भांति नित्य बढ़ता है। गर्भधारण के लिए शुक्ल पक्ष की रात्रियों को ही उत्तम माना जाता है। स्त्री के मासिक धर्म शुरू होने के बारहवें से सोलहवें दिन तक स्त्री में गर्भधारण की क्षमता अधिक होती है। स्त्री सातवें दिन से लेकर सताइस्वें दिन तक कभी भी गर्भधारण कर सकती है, परन्तु बारहवें से सोलहवें दिन तक गर्भ ठहरने की संभावना अधिक रहती है।
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पुत्री प्राप्ति के लिए:-- यदि दंपत्ति पुत्री की चाहत रखते हैं तो उन्हें मासिक धर्म शुरू होने के 9, 11, 13, 15, 17, 19 एवं 21वें दिन गर्भधारण की कोशिश करनी चाहिए। यानी विषम संख्या वाले दिनों में संपर्क करना चाहिए। शुक्ल पक्ष में विषम संख्या वाली दिनों में धारण किए गए गर्भ में कन्या शिशु के ठहरने की अधिक संभावना होती है।
पुत्र प्राप्ति के लिए:-- यदि दंपत्ति पुत्र की चाहत रखते हैं तो उन्हें मासिक धर्म शुरू होने के 8, 10, 12, 14, 16, 18, 20 एवं 22वें दिन गर्भधारण की कोशिश करनी चाहिए। यानी सम संख्या वाले दिनों में संपर्क करना चाहिए। शुक्ल पक्ष में सम संख्या वाले दिनों में धारण किए गए गर्भ में पुत्र के ठहरने की अधिक संभावना होती है।
उत्तम गर्भधान हेतु शुक्ल पक्ष की दशमी से पूर्णिमा तक की तिथियां सबसे अच्छी होती है। पुत्र के लिए दसवीं से पूर्णिमा के बीच में मासिक धर्म की सम संख्या वाली रातें और पुत्री के लिए विषम संख्या वाली रातों का उपयोग करना चाहिए। इसके लिए दंपत्ति को पंचांग देखकर एवं ऋतुकाल की रातों का समन्वय करके पहले से हीं निश्चय कर लेना चाहिए कि कौन -कौन सी रातें उनके लिए उपयोगी है। क्योंकि पूरी तैयारी के साथ निश्चित तारीख को यशस्वी संतान प्राप्ति के उद्देश्य से किया गया संपर्क हीं 'गर्भाधान संस्कार' कहलाता है। अतः इसे उचित ढंग से पवित्र विचारों के साथ मनुष्य का धर्म -कार्य समझ कर करना चाहिए।
संतान पुत्र हो अथवा पुत्री, यह महत्वपूर्ण नहीं है।
संतान का स्वस्थ एवं गुणवान होना अधिक महत्वपूर्ण है।
पुत्र अथवा पुत्री प्राप्ति के पुरातन उपाय
Reviewed by Ragini Rani
on
July 27, 2019
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